11th class notes / 1st puc hindi notes /yuvao se / chapter 2

11th class notes इस लेख में 1st puc hindi notes chapter 2 युवाओं से (yuvao se) से संबंधित सभी प्रश्नों के उत्तर को बहुत ही बढ़िया तरीके से लिखा गया है।

इस 11th class notes में सभी उत्तरों को बहुत ही विस्तार से लिखा गया है। इस Notes को पढ़ने के बाद इस Yuvao se पाठ संबंधित आपके सारे doubts clear हो जायेंगे।

हमें आशा है कि यह 11th class notes न सिर्फ पाठ को समझने के लिए बल्कि परीक्षा में 100 % अंक पाने के लिए भी अति महत्वपूर्ण है। तो चलिए इस लेख को पढ़ना शुरू करते हैं।

11th class notes / 1st puc hindi notes /yuvao se / chapter 2:

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11th class notes, 1st puc hindi notes, yuvao se, chapter 2

I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए:

1. स्वामी विवेकानंद का विश्वास किन पर है?

उत्तर: स्वामी विवेकानंद का विश्वास नवयुवकों पर है।

2. स्वामी विवेकानंद के अनुसार भारत के राष्ट्रीय आदर्श क्या हैं?

उत्तर: स्वामी विवेकानंद के अनुसार भारत के राष्ट्रीय आदर्श त्याग और सेवा हैं।

3. कौन सबकी अपेक्षा उत्तम रूप से कार्य करता है?

उत्तर: पूर्णतया निःस्वार्थी व्यक्ति सबकी अपेक्षा उत्तम रूप से कार्य करता है।

4. किस शक्ति के सामने सब शक्तियाँ दब जाएँगी ?

उत्तर: इच्छाशक्ति के सामने सब शक्तियाँ दब जाएँगी।

5. असंभव को संभव बनानेवाली चीज़ क्या है?

उत्तर: प्रेम असंभव को संभव बनानेवाली चीज़ है।

6. जो अपने आपमें विश्वास नहीं करता, वह क्या है?

उत्तर: जो अपने आपमें विश्वास नहीं करता, वह दुर्बल है।

7. कमज़ोरी किसके समान है?

उत्तर: कमज़ोरी मृत्यु के समान है।

8. सबसे पहले हमारे तरुणों को क्या बनना चाहिए?

उत्तर: सबसे पहले हमारे तरुणों को मनुष्य बनना चाहिए।

9. प्रत्येक आत्मा क्या है?

उत्तर: प्रत्येक आत्मा अव्यक्त ब्रह्म है।

10. नवयुवकों को किसकी तरह सहनशील होना चाहिए?

उत्तर: नवयुवकों को पृथ्वी माता की तरह सहनशील होना चाहिए।

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:

1. भारतवर्ष का पुनरुत्थान कैसे होगा ?

उत्तर: भारतवर्ष का पुनरुत्थान शारीरिक शक्ति से नहीं, बल्कि आत्मा की शक्ति द्वारा होगा। युवाओं के त्याग, सेवा और आत्मविश्वास से भारत पुनर्जीवित होगा।

2. त्याग और सेवा के बारे में स्वामी विवेकानंद जी के क्या विचार हैं?

उत्तर: स्वामी विवेकानंद जी त्याग और सेवा को भारत के राष्ट्रीय आदर्श मानते हैं। वे मानते हैं कि दूसरों के लिए त्याग और सेवा करने से व्यक्ति के भीतर शक्ति जागृत होती है।

3. स्वदेश-भक्ति के बारे में स्वामी विवेकानंद जी का आदर्श क्या है?

उत्तर: स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार स्वदेश-भक्ति का मतलब केवल देश के लिए मरना नहीं है, बल्कि देश के गरीबों और पीड़ितों की सेवा करना है।

4. सर्व धर्म सहिष्णुता के बारे में स्वामी विवेकानंद जी के विचार लिखिए।

उत्तर: स्वामी विवेकानंद जी सभी धर्मों का सम्मान करते थे। वे मानते थे कि सभी धर्मों का मूल उद्देश्य एक ही है और हमें सभी धर्मों के लोगों के साथ मिलकर रहना चाहिए।

5. शिक्षा के बारे में स्वामी विवेकानंद जी क्या कहते हैं?

उत्तर: स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार शिक्षा का मतलब केवल ज्ञान प्राप्त करना नहीं है, बल्कि चरित्र का निर्माण करना है। शिक्षा हमें एक अच्छा इंसान बनाती है।

III. 11th class notes – ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए:

1. ‘यह याद रखो कि तुम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हो।’

अर्थ: इस वाक्य का अर्थ है कि व्यक्ति अपने जीवन का निर्माण स्वयं करता है। हमारे विचार और कर्म ही हमारे भविष्य को निर्धारित करते हैं।

संदर्भ: स्वामी विवेकानंद जी युवाओं को आत्मविश्वास से भरना चाहते थे। वे उन्हें यह बताना चाहते थे कि वे अपने जीवन के कप्तान हैं और वे जो कुछ भी चाहते हैं, उसे प्राप्त कर सकते हैं।

2. ‘उठो, जागो और तब तक रुको नहीं, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।’

अर्थ: यह एक प्रेरणादायक वाक्य है जो हमें निरंतर प्रयास करने और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है।

संदर्भ: स्वामी जी युवाओं को आलस्य और निष्क्रियता से दूर रहने और अपने लक्ष्यों की ओर अग्रसर रहने के लिए प्रेरित कर रहे थे।

3. ‘भय से ही दुःख होता है, यह मृत्यु का कारण है तथा इसी के कारण सारी बुराई तथा पाप होता है।’

अर्थ: इस वाक्य का अर्थ है कि भय मानव जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है। भय के कारण ही हम दुखी होते हैं और गलत काम करते हैं।

संदर्भ: स्वामी जी युवाओं को भयमुक्त जीवन जीने के लिए प्रेरित कर रहे थे। वे चाहते थे कि युवा साहसी बनें और जीवन की चुनौतियों का सामना करें।

4. ‘ढोंगी बनने की अपेक्षा स्पष्ट रूप से नास्तिक बनना अच्छा है।’

अर्थ: इस वाक्य का अर्थ है कि किसी चीज में झूठा विश्वास रखने से अच्छा है कि हम स्पष्ट रूप से कह दें कि हमें उस पर विश्वास नहीं है।

संदर्भ: स्वामी जी ईमानदारी और सच्चाई का महत्व बता रहे थे। वे चाहते थे कि लोग अपने विचारों के प्रति ईमानदार रहें।

5. ‘मैं तुम सबसे यही चाहता हूँ कि तुम आत्मप्रतिष्ठा, दलबंदी और ईर्ष्या को सदा के लिए छोड़ दो।’

अर्थ: इस वाक्य का अर्थ है कि हमें अहंकार, गुटबंदी और दूसरों से ईर्ष्या करने से बचना चाहिए।

संदर्भ: स्वामी जी युवाओं को एकता और भाईचारे का महत्व बता रहे थे। वे चाहते थे कि युवा एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करें।

IV. विलोम शब्द लिखिए:

  1. आशा – निराशा
  2. साधारण – असाधारण, विशेष
  3. स्वदेश – विदेश
  4. स्वार्थी – निस्वार्थी
  5. कीर्ति – अपकीर्ति
  6. शिक्षित – अशिक्षित
  7. पवित्र – अपवित्र
  8. जन्म – मृत्यु
  9. निर्धन – धनी
  10. मज़बूत – कमज़ोर
  11. धर्म – अधर्म
  12. नास्तिक – आस्तिक

V. समानार्थक शब्द लिखिए:

  1. नवीन – नया, ताज़ा
  2. पुरोहित – पंडित, ब्राह्मण
  3. जंगल – वन, कानन
  4. पहाड़ – पर्वत, गिरि
  5. ईश्वर – भगवान, परमात्मा
  6. साहस – हिम्मत, बहादुरी
  7. तरुण – युवा, जवान
  8. अधिक – ज्यादा, बहुत

VI. निम्नलिखित अनुच्छेद पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:

1. हमारा आदर्श वाक्य क्या है?

उत्तर: हमारा आदर्श वाक्य है, “हमेशा बढ़ते चलो। मरते दम तक गरीबों और पददलितों के लिए सहानुभूति – यही हमारा आदर्श वाक्य है।”

2. किसके प्रति आस्था रखनी चाहिए?

उत्तर: हमें ईश्वर के प्रति आस्था रखनी चाहिए।

3. किसकी आवश्यकता नहीं है?

उत्तर: किसी चालबाज़ी की आवश्यकता नहीं है।

4. तुम किसके समान होगे?

उत्तर: हम सिंहतुल्य होंगे।

5. हमें किसे जगाना है?

उत्तर: हमें भारत को और पूरे संसार को जगाना है।

  • अनुच्छेद का सार:

यह अनुच्छेद युवाओं को देश सेवा के लिए प्रेरित करता है। इसमें कहा गया है कि युवाओं को हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए और गरीबों और कमजोरों की मदद करनी चाहिए। ईश्वर पर विश्वास रखने और किसी चालबाजी से दूर रहने का संदेश दिया गया है। युवाओं को सिंह की तरह बहादुर और दृढ़ निश्चयी बनने के लिए प्रेरित किया गया है।

  • मुख्य विचार:

  • युवाओं का देश सेवा में योगदान
  • गरीबों और कमजोरों के प्रति सहानुभूति
  • ईश्वर पर विश्वास
  • चालबाजी से दूर रहना
  • साहस और दृढ़ निश्चय

यह अनुच्छेद युवाओं को देश सेवा के लिए प्रेरित करने वाला एक प्रेरणादायक संदेश देता है।

VII. 11th class notes- योग्यता विस्तार:

माता शारदादेवी: एक संक्षिप्त परिचय

माता शारदादेवी, श्री रामकृष्ण परमहंस की पत्नी और एक सम्मानित संत थीं। वे 19वीं शताब्दी में बंगाल में पैदा हुई थीं और उन्होंने भारतीय आध्यात्मिक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

  • बचपन:

माता शारदादेवी का जन्म एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बहुत कम उम्र में उनका विवाह श्री रामकृष्ण परमहंस से हुआ था।

  • श्री रामकृष्ण के साथ संबंध:

श्री रामकृष्ण ने माता शारदा को आध्यात्मिक रूप से प्रशिक्षित किया और वे उनकी शिष्या बन गईं। श्री रामकृष्ण, माता शारदा को देवी का अवतार मानते थे।

  • रामकृष्ण मिशन:

रामकृष्ण मिशन की स्थापना के बाद, माता शारदा ने इस संगठन को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए भी काम किया।

  • आध्यात्मिक शिक्षा:

उन्होंने कई लोगों को आध्यात्मिक मार्ग दिखाया और उन्हें जीवन के सच्चे अर्थ को समझने में मदद की।

  • माता शारदा का योगदान

महिला सशक्तिकरण: उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया।

सर्वधर्म समभाव: उन्होंने सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया।

सेवा: उन्होंने मानव सेवा को ईश्वर की सेवा माना।

आत्मज्ञान: उन्होंने आत्मज्ञान प्राप्त करने का महत्व बताया।

  • माता शारदा का संदेश:

माता शारदा का संदेश बहुत सरल और स्पष्ट था: सभी जीवों के प्रति प्रेम, सेवा और करुणा। उन्होंने हमें सिखाया कि हम सभी एक हैं और हमें एक दूसरे की मदद करनी चाहिए।

श्री रामकृष्ण परमहंस: एक संक्षिप्त परिचय

श्री रामकृष्ण परमहंस 19वीं सदी के एक महान भारतीय संत, आध्यात्मिक गुरु और विचारक थे। वे सभी धर्मों की एकता में विश्वास रखते थे और ईश्वर की प्राप्ति के लिए कठोर साधना करते थे।

  • जीवन वृत्त:

जन्म: रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी, 1836 को बंगाल के कामारपुकुर गांव में हुआ था।    दक्षिणेश्वर काली मंदिर: वे दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुजारी बने और यहीं उन्होंने अपनी साधना शुरू की।

विवाह: उन्होंने माता शारदा से विवाह किया जो बाद में एक सम्मानित संत बन गईं।

शिष्य: उनके प्रमुख शिष्यों में स्वामी विवेकानंद थे जिन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।

मृत्यु: 16 अगस्त, 1886 को उन्होंने अंतिम सांस ली।

  • शिक्षा और दर्शन

  • सर्वधर्म समभाव:

रामकृष्ण परमहंस सभी धर्मों की एकता में विश्वास करते थे। उनके अनुसार, सभी धर्म ईश्वर तक पहुंचने के अलग-अलग मार्ग हैं।

  • ईश्वर दर्शन:

वे ईश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन में विश्वास रखते थे और उन्होंने अपनी साधना के माध्यम से इसे प्राप्त किया।

  • सेवा: उन्होंने सेवा को ईश्वर की भक्ति का सबसे बड़ा रूप माना।
  • आत्मज्ञान: उन्होंने आत्मज्ञान को जीवन का अंतिम लक्ष्य बताया।
  • रामकृष्ण मिशन:

रामकृष्ण परमहंस के शिष्यों ने उनके विचारों को आगे बढ़ाने के लिए रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। यह मिशन आज भी समाज सेवा, शिक्षा और आध्यात्मिक विकास के कार्यों में लगा हुआ है।

  • रामकृष्ण परमहंस जी की देन:

भारतीय संस्कृति: रामकृष्ण परमहंस ने भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई।

समाज सुधार: उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई और समाज सुधार के लिए काम किया।

आध्यात्मिक मार्गदर्शन: उन्होंने लाखों लोगों को आध्यात्मिक मार्ग दिखाया और उन्हें जीवन के सच्चे अर्थ को समझने में मदद की।

रामकृष्ण परमहंस के विचार आज भी प्रासंगिक हैं और हमें एक बेहतर समाज बनाने के लिए प्रेरित करते हैं।

निष्कर्ष:

हमें आशा है कि आपको यह 11th class notes / 1st puc hindi notes /yuvao se / chapter 2 लेख आपको पसंद आया होगा।

अगर आप इस 11th class notes से संबंधित कुछ पूछना चाहते हैं तो जरूर Comments लिखिएगा।

FAQs बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्न:

  1. 1. स्वामी विवेकानंद का विश्वास किन पर है?

    उत्तर: स्वामी विवेकानंद का विश्वास नवयुवकों पर है।

  2. 2. स्वामी विवेकानंद के अनुसार भारत के राष्ट्रीय आदर्श क्या हैं?

    उत्तर: स्वामी विवेकानंद के अनुसार भारत के राष्ट्रीय आदर्श त्याग और सेवा हैं।

  3. 3. कौन सबकी अपेक्षा उत्तम रूप से कार्य करता है?

    उत्तर: पूर्णतया निःस्वार्थी व्यक्ति सबकी अपेक्षा उत्तम रूप से कार्य करता है।

  4. 4. किस शक्ति के सामने सब शक्तियाँ दब जाएँगी ?

    उत्तर: इच्छाशक्ति के सामने सब शक्तियाँ दब जाएँगी।

  5. 5. असंभव को संभव बनानेवाली चीज़ क्या है?

    उत्तर: प्रेम असंभव को संभव बनानेवाली चीज़ है।

  6. 6. जो अपने आपमें विश्वास नहीं करता, वह क्या है?

    उत्तर: जो अपने आपमें विश्वास नहीं करता, वह दुर्बल है।

  7. 7. कमज़ोरी किसके समान है?

    उत्तर: कमज़ोरी मृत्यु के समान है।

  8. 8. सबसे पहले हमारे तरुणों को क्या बनना चाहिए?

    उत्तर: सबसे पहले हमारे तरुणों को मनुष्य बनना चाहिए।

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